सम्पादकीय -जया पाठक



















यह पुरातन गाँव मेरा


यह गाँव मेरा
अपने आज के इस
प्यास में भी
लगा मेला
ठेलम ठेला
बाल्टी में डेकची में
(आत्मा में)
डोर डाले
झांकता
बीते युगों के
रीत के अंधे कुएं में
क्या पता 
रस्साकस्सी में
कौन किसको खींचता है...
आज-कल का
यह अनोखा द्वन्द भाई!
डोरियों से बंधा सा यह
खींचता सा गाँव मेरा
खिंच रहा है
भर रहा है
रीतियों से गागरें या
रीतता जाता हुआ सा
आज से
(या बाहरी समाज से )
यह पुरातन गाँव मेरा

(जया पाठक)

दोस्तों, स्वागत है आप सबका नई हवा के ब्लॉग पर. अगस्त २०१० के "इस माह के शीर्षक" के अंतर्गत हमने एक चित्र चुना था जिसपर सभी साथ कवियों की कवितायेँ आ चुकी हैं! आप सभी कवि और पाठक मित्रों का हार्दिक अभिनन्दन है. यहाँ इस ब्लॉग पर सभी रचनायें प्रकाशित कर दी गयीं हैं. हमारे इस माह के समीक्षक है श्री अर्नेस्ट अल्बर्ट और श्री सौरभ पाण्डेय. बस अब आप दोनों के सुझाव, टिप्पणियाँ, समीक्षा एवं मार्गदर्शन अपेक्षित है.

अगले महीने का शीर्षक और समीक्षक-संपादक समूह को घोषणा शीघ्र हो की जाएगी. साथ बने रहे....

सादर
जया पाठक श्रीनिवासन

5 Comments:

  1. vikram7 said...
    aapaka svaagat hae,sundar rachana
    Nityanand Gayen said...
    accha pyaas. visit others blogs too.
    कृषि समाधान said...
    Best Wishes to You Dear Sister....
    lifemazedar.blogspot.com
    kvkrewa.blogspot.com
    Chandar Meher
    अजय कुमार said...
    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
    संगीता पुरी said...
    हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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